हमें भी चाहिए आज़ादी… भारतमें… क़िससे?…

कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्… सँसार के कण कण में इस नाम की गूंज मध्यबिंदुसि निहित है. कुछ इसी तरह आजकल मैन स्ट्रीम टीवी मीडिया की हर फ्रेम फ्रेम में JNU के उनत्तीस वर्षीय बालक कन्हैया की तस्वीरों की बाढ़ आई हुई है. बड़े बड़े टीवी चैनलों एवं अखबारों के स्टार पत्रकारों के हुजूम JNU कैम्पस में कन्हैया नामक बालक के ईर्द गिर्द मंडरा रहे हैं. यह बालक कन्हैया जैसे बहुत बड़ा पराक्रम करके विजयी होकर आया हो वैसे उसको सेलिब्रिटी मानते हुए उसके साथ सैल्फि खिंचवाने की होड़ में लगे हैं.

यह कन्हैया नाम भी बड़ा सिम्बोलीक, सांकेतिक है. बड़े बड़े दुष्कर्म पवित्र नामों तले ढंक जाते हैं. घोर अपराध पवित्र चोलों, एवं बाह्य रूपों के पीछे छुप जाते हैं. यहां भी बड़ी घोर विडंबना यह है, की इस उनत्तीस वर्षीय बालक कन्हैया को आज़ाद भारत में आज़ादी चाहिए. किन किन चीजों से आज़ादी चाहिए इस बात की पूरी फेहरिस्त इस बालकने जेलसे बहार आते ही रात ही रात अपने लम्बे चौड़े भाषण के दौरान बताई है.

यह बालक, बताया जाता है की बड़े पिछड़े राज्य बिहार के बेहद ग़रीब परिवार से आता है और, सही है की नहीं, मालूम नहीं लेकिन उसके घरकी मासिक आय रुपये तीन हज़ार बताई जाती है. ऐसेमें भारतीय घरों में आम तौर पर बालक जैसे ही समझने लगता है, उसकी पहली प्राथमिकता माँ-बाप का सहारा बनने की, उनका हाथ बंटाने की होती है. क्यों की आप और मैं, हम सब जानते हैं की तिन हज़ार रूपए महीना कमाने वाले माँ-बाप प्राथमिक शिक्षा तक का खर्चा नहीं उठा सकते, दिल्ली जैसे शहरमें JNU में उनत्तीस सालके बालक का खर्चा उठाने की तो संभावनाओं का विचार भी बहुत दुरकी कौड़ी होगी.

यहां हम जिस उनत्तीस सालके बालक कन्हैया की बात कर रहे हैं, उनके नाम ना कोई सफलता का तमगा है ना कभी उनके नाम कोई एग्जाम टॉप करने का रिकार्ड है, न उनकी कोई विशेष उपलब्धि है. अगर हो भी तो किसी पब्लिक डोमेन में इसका ज़िक्र नहीं मिलता. हां, कोई बात उनके जमा पलड़े में है तो वो ये है की ये बालक अभी दिल्ली हाइकोर्ट की छह महीने की शर्ती जमानत पर रिहा हुए हैं. जमानत पर छुटने के बाद जेलसे JNU में उनकी आमद जैसे किसी बहुत बडी जंग में विजयी सेनापति की तरह ये महंगी महंगी गाड़ियों के काफ़िले में हुई जिसका जिवंत प्रसारण कई चैनलों पर चल रहा था, इस बालक को रेड कारपेट वैलकम दिया गया, इस बालकने JNU पहुंचते ही जो दमदार भाषण किया जिसमें प्रधानमंत्री, दिल्ली पुलिस, जेल प्रशासन, RSS, कुल मिलाकर जो भी लोग JNU के अफज़ल प्रकरण के विरोधी हैं उनको जो जमकर फट्कार लगाई की वह सारे लोग जो वर्तमान सरकार के किसी भी कार्य के घोर विरोधी हैं वो सारे ईस उनत्तीस वर्षीय बालक कन्हैया के भक्त हो गये एवं उसमें अपना उद्धारक देखने लगे. सीताराम येचुरीजीने ये घोषणा तक कर दी की यह बालक उनके लिए आने वाले बंगाल व अन्य प्रदेशों के चुनावों में उनके लिए प्रचार करेगा.

जिसका कुछ हासिल नहीं, जो खुद किसी काबिल नहीं, जो अफजल जैसे कातिलों को शहीद साबित करने पर तुले हुए सिरफिरों के साथ कंधे से कंधा मिलते हुए घूमता पाया जाता है, उस बालकको  पठानकोट हमले के वक्त आतंकवाद से आज़ादी मांगते हुए नहीं देखा गया, हररोज़ कश्मीरमें हमारे सैनिक शहीद हो रहे है उनके लिए व्यथित होते हुए किसी चैनल पर नहीं देखा गया.

विडंबना ये है की जो अपनी माँ को उनत्तीस सालका होने पर भी रोज की मज़दूरी से निजात नहीं दिला पाया, जो अब तक अपनी माँ का हाथ नहीं बंटा सका, वो भारतमें किसी और के लिए क़ैसी आज़ादी का आन्दोलन चला रहा है, जिसके लिए उसको जमानत देनेवाली जज साहिबा को भी कहना पड़ा की किन परिस्थितियों में हमारे जांबाज सैनिक हमारे देशकी रक्षा करते हैं तब जाकर यह बालक JNU में आन्दोलन कर पाते हैं. तकलीफ़ ये देखकर भी होती है की ये उनत्तीस साल या उससे भी बड़ी उम्र के बालक देश की GDP में योगदान देने के अलावा वो सबकुछ करना पसंद करते हैं जो देशको ऊपर उठाने के बजाय देशको हिस्सों में बांट देता है और फिर यही बालक भारत से नहीं, भारतमें आज़ादी मांगते हैं. अरे भाई आप विद्यार्थी हो, आपका लक्ष्य है पढ़ लिख कर देश की प्रगति में योगदान देना. आप वही ठीक से करो. कन्हैया बालक खुद अपने भाषण में कहता है की वो अति पिछड़े बिहार राज्य से आता है, क्यों भाई, बिहार क्यों पिछड़ा रह गया? पूरा देश एक साथ आज़ाद हुआ था तो क्यों कुछ राज्य प्रगति परस्त हो गए, और बिहार को आज भी आपको पिछड़ा कहना पड रहा है, इसकी क्या वजह है? बिहार में क्यों आप पिछड़ेपन से आज़ादी नहीं मांग रहे?

और घोर आश्चर्य की बात तो ये है की वर्तमान सरकार विरोधी लोगों ने इस बालकको सर पर उठा लिया है. इस बात पर कतई आश्चर्य नहीं होगा की अब ये बालक राजनीति में जरूर अपना भविष्य बना लेगा और आनेवाले वर्षो में भारत के लिए नीति बनानेवालों में शामिल हो जायेगा जिसका अपना, आज कोई हासिल नहीं, जो अपनी उम्रदराज़ माँ को मजदूरी करने से आज़ाद करा सकता…

दुःख होता है… गुस्सा भी आता है… हमें भी भारतमें आज़ादी चाहिए… ऐसे तत्वों से जो भारतको अखंड रखने में रोड़ा बनते हैं, जो भारत की प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं… उन सबसे जो फर्क पैदा करते हैं शहीदों और देशवासियों के बिच. जो आतंकियों को शहीद बताते हैं उनसे हमें आज़ादी चाहिए… और हमें यक़ीन है हमारे कानून पर, हमारी अदालत पर.

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