गांधीजी का चश्मा और देशभक्ति

आजके अखबारों की सुर्खियां विजय माल्या की फ़रारी से भरी पड़ी है. सरकारी कार्रवाई होती रही औऱ ये महाशय चम्पत हो गए. इन्होंने किंगफिशर के कर्मचारी एवं शेयर होल्डरों को ही नहीं बल्कि सरकारी देनदारियों और उन सभी बैंकों को भी बड़ा भारी चुना लगा दिया औऱ ग़ायब हो गए.

सवाल ये है, की जब सारी सरकारी एजेंसियां जानती थी की ये महाशय NRI स्टैटस धारि है और देश से ज्यादा देश के बाहर इनकी संपत्तियां फ़ैली हुई है, तो एजेंसियां कैसे सोती रही और ये भाईसाब रफ़ा दफ़ा हो गये. सोचने वाली बात ये भी है की बैंकों ने इतना ज़्यादा इंतजार क्यों किया जब की वे जानतीं है को वो किसीको लोन्स देतीं हैं तो वो पैसा उनका अपना नहीं होता. वो पैसा उन लोगों का है जो अपनी बैंकों पर पूरा विश्वास रखकर अपनी जमा पूंजी सौंपते हैं. और जब ये NPA हो जाता है तो भुगतान सरकारी पैसों से होता है.

सरकारी पैसा फिर हमारा अपना होता है क्योंकि सरकार तो पैसा कमाने कहीं जाती नहीं. तो अगर विजय माल्या बहुत बड़ी रक़म डुबोकर चम्पत हुआ है तो वो भारत की ऍम जनता का पैसा डुबोकर गया है. तो विजय माल्या भले ही फ़रार हो गया, उसको लोन देनेवालों ने उससे भी बड़ा गुनाह किया है. लोन देने वाले जब भी लोन देते हैं, पहले वो कितना सुरक्षित तरीक़े से वापस आयेगा उसकी चौकसी ज़रूर करते हैं, दूसरे, जब उस लोन की वापसी सही समय से हो औऱ वो ब्याज़ भी कमाकर दे ये हरएक साहुकार सुनिश्चित करता है.

इतनी सीधी बात यहां क्योंकर टेढ़ी हो गई. लोन देने वाले भी उतने ही गुनाहगार हैं जितना फ़रार होने वाला माल्या. विडंबना ये है की जितना बड़ा आदमी, उतने उसको बचाने वाले लाईन लगाकर खड़े होते हैं. उदाहरण के तौर पर ही देखें, शारदा चिटफंड को सहारा देनेवाले सुजॉय घोष को ममता बेनर्जी ने टिकट दी है. जबकि विजय माल्या ख़ुद राज्यसभा सांसद है, ऐसे में कितनी बड़ी जिम्मेदारी बनती है उस शख़्स की जो भारत के लिए नीति निर्धारण का काम करने के लिये चुना गया है, एवं जिसको समर्थन देनेवालों में जनता दल सैक्युलर के साथ वर्तमान सत्ताधारी पार्टी BJP भी शामिल हैं.

यही डॉक्टर विजय माल्या थे जिन्होंने गांधीजी की चीजों को करोड़ों रुपये ख़र्च करके विदेशियों के हाथ बिकने से रोका एवं भारतवासियों के हवाले किया था. अब यही लगता है को वो देशभक्ति नहीं बल्कि सिर्फ़ दिखावा था जबकि असलियत में उनकी नीयत में ही खोट थी. अब जब चिड़िया पूरा खेत चुगकर उड़ चुकी है तो देखें सरकार कैसे उनकी भारतभर में फ़ैली सम्पदा से सारी देनदारी वसूलती है, यही नहीं उनसे पैसा वसुलनेमें नाकामयाब अफसरों को क्या दंड देती है.

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