मेघालय चुनाव नतीजों से 7 बिझनेस लेसन्स।

मेघालय में ५९ बैठकों पर चुनाव हुए जिसमें २१ बैठकों पर कांग्रेस ने विजय हासिल की, जबकि २ बैठक भाजपा ने काबिज़ की। औऱ बाक़ी बैठक अन्य दलों के खाते में गई जिसमें मुखतः एन पी पी के १९ सदस्य जीते। इस पार्टी का गठन कांग्रेस से निकले दिवंगत पी ए संगमा ने कीया था। जिसकी बागडोर अब उनके बेटे कोनराड संगमा के हाथों में है, अन्य पक्षों में मुखर यू डी पी के ६ सदस्य हैं।

कांग्रेस इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थीं। औऱ सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के नाते उन्होंने सबसे पहले सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया था। फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि कांग्रेस बहुमत से ९ बैठक परे है। उधर भाजपा सिर्फ़ २ सदस्यों की जीत के बावजूद सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।

किसी प्रकार के प्री इलेक्शन गठजोड़ ना होने के बावजूद पोस्ट इलेक्शन एक्शन उनकी औऱ से इतनी जल्दी औऱ इतने अचूक लिए गए कि एक बार फ़िर गोवा औऱ मणिपुर की तरह इस बार भी कोंग्रेस मुँह ताकती रही औऱ भाजपा ने ग़ैर कांग्रेसी दलों को पलक झपकते ही अपने साथ कर लिया।

हालांकि २ सदस्यों के चलते सरकार चलाने में शायद वह सक्रिय भूमिका में न भी हो तो कांग्रेस को उसने सत्ता के करीब भी नहीं फटकने दिया। आज राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि २ सीट्स मिलने के बावजूद पैसों के दम पर अन्य पार्टियों के साथ अनैतिक गठजोड़ करके भाजपा सिर्फ़ सत्ता के लालच में यह सब कर रही है। हो सकता है राहुल गांधी सही कह रहे हैं।

हम इस पूरे घटनाक्रम को एक बिजनेसमैन की नज़र से देखें तो किसी बैटलफील्ड में विरोधियों को मात देकर जीत हासिल करना ही एकमात्र परम उद्देश्य किसी भी ऑर्गेनाइजेशन का होना चाहिए। औऱ इसके केंद्र में केवल ग्राहकों का हित होना चाहिए। हालांकि यह एक अलग विषय अपने आप में है जिसके बारे में हम फ़िर कभी बात करेंगे।

इस घटनाक्रम से कुछ विशेष बातें निकलकर आती हैं जो हमें हमारे बिझनेस में जरूर अमल में लानी चाहिए। आइए इन बातों पर गौर करें।

  1. अपने कंपेटिटर पर बारीक़ नज़र रखना – भाजपा की लीडरशिप कांग्रेस की एक एक एक्शन पर नज़र गड़ाए हुए थे। वोह कब किससे मिले, उनकी क्या बात हुई।
  2. अपने कंपेटिटर से पहले ही हरकत में आ जाना – कांग्रेस सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के नाते गवर्नर के पास दावा पेश कर रही थी तब भाजपा ने ग़ैर कांग्रेसी दलों को अपने साथ करने का काम किया।
  3. समय रहते अपनी कमजोरियों को पहचाना – भाजपा समझ गई कि उन्हें २ सदस्यों के आगे कुछ नहीं हासिल होगा, ऐसे में शुरुआत से ही उन्होंने नेगोसिएशन की राह अपना ली।
  4. स्थानीय लीडरशिप को परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने की आझादी – भाजपा की लीडरशिप अपने निचले स्तरों पर अच्छी लीडरशिप तैयार करने में औऱ उसे सही वक़्त पर सही या गलत निर्णय लेने की पूरी आझादी देती है। इसी आझादी के चलते आज गोवा एवं मणिपुर में भाजपा की सरकार है।
  5. सबको साथ लेकर चलना – कांग्रेस के अलावा जितने भी दल चुनाव में थे उन सभी को एक मंच पर लाकर साझा न्यूनतम कार्यक्रम बिल्कुल थोड़े से वक़्त में पेश करना औऱ सबको उसपर राजी कर लेना।
  6. कम से कम वक़्त में परिणामकारक एक्शन – हरेक गैर दलों के लीडर्स औऱ उनके सदस्यों को एक ही वक़्त में अलग अलग मिलने के लिए ऐसी टीमों का गठन करना जो सबको अपने साथ मिला सके। बीना वक़्त गंवाए।
  7. अंतिम परिणाम को ध्यान में रखकर एक्शन लेना – भाजपा का अंतिम लक्ष्य कांग्रेस को सत्ता से दूर रखना था। यही उनका मिशन भी है।

यह सारी अपने आप में बड़ी कमाल की बातें हैं। इन पर अमल करने से हमारा बिझनेस हमारे कंपेटिटर से तो काफ़ी आगे निकल सकता है बशर्ते हमारा सारा ध्यान ग्राहकों को अच्छी प्रोडक्ट औऱ सेवा देने पर हो।

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