डार्क वेब क्या होता है? डार्क वेब क्यों इस्तेमाल होता है?

इंटरनेट अपने आप में एक चमत्कार है। यह एक इतना विस्तृत यूनिवर्स माने ब्रम्हांड है, जो हमारी कल्पना से परे है। हम गूगल, फेसबुक, bbc iplayer औऱ अमेज़ॉन के बारे में जानते हैं। लेकिन क्या कभी यह सोचा है कि इन जानी मानी वेबसाइटों के आगे भी इंटरनेट की एक अजीब औऱ अज्ञात दुनिया है। जिसको डार्क वेब के नाम से जाना जाता है। औऱ जिसमें हम कभी भी गोता नहीं लगा पाएंगे। आईए, आज हम इंटरनेट के इस पहलू को समझने की कोशिश करते हैं।

डार्क वेब इंटरनेट की दुनिया के कई अंधेरे कोनों में से एक है।

१३ मार्च, १९८९ वह दिन था जिस दिन वर्ल्ड वाइड वेब के जनक टीम बार्नर्स ली ने अपने संस्थान CERN – यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च को हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल(HTTP) के जरिए इंटरनेट के द्वारा संस्थान की महत्वपूर्ण रिसर्च डेटा को एक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा था। औऱ आज हालात यह है कि बिना इंटरनेट के जीवन की कल्पना तक नहीं कि जा सकती। डार्क वेब कैसे इसका हिस्सा बन गया, आइए जानने की कोशिश करते हैं।

वर्ल्ड वाइड वेब को आम तौर पर तीन हिस्सों में बांट कर आसानी से समझा जा सकता है।

सरफेस वेब (surface web) सरफेस वेब (जिसे Visible वेब, Clearnet, Indexable वेब, Indexed वेब या Lightnet भी कहा जाता है), वर्ल्ड वाइड वेब(WWW) का वह हिस्सा है जो आम जनता के लिए आसानी से उपलब्ध है और इसे किसी भी सर्च इंजन द्वारा खोजा जा सकता है। आसान से शब्दों मे हम यह कह सकतें हैं की यह वो इंटरनेट है जो दुनिया मे कोई भी यूज़र कभी भी, कहीं से भी बिना किसी स्पेशल परमिशन के एक्सेस कर सकता है।

उदाहरण – आप जो गूगल पर सर्च करते हैं और जो सर्च रिजल्ट मे बहुत सारी वेबसाईट्स आती हैं, वह सब सरफेस वेब पर होती है
लेकिन आप को यह जानकर आश्चर्य होगा, की ये सारा सरफेस वेब पूरे इंटरनेट का सिर्फ ४% करीब है। एक स्टडी के मुताबिक करीब करीब ९६% जो इंटरनेट है वो डीप वेब के अंदर आता है

डीप वेब (deep web): डीप वेब – इसे “Deepnet”, “The invisible web”, “The Undernet” और “The Hidden web” नाम से भी जाना जाता है। यह इंटरनेट का वह हिस्सा है, जिसमे कांफीडेंशयल डाटा स्टोर होता है और इसे एक नॉर्मल इंटरनेट यूजर आसानी से एक्सेस नहीं कर सकता यदि आपको डीप वेब को एक्सेस करना है तो आपको चाहिए एक स्पेशल यूआरएल, एक स्पेशल वेबसाइट के लिए। एक स्पेशल सर्वर के लिए एक एड्रेस और उस एड्रेस के साथ मे आपको चाहिए परमिशन, जिससे आप उस इन्फॉर्मेशन को एक्सेस करने के लिए सक्षम हैं

डीप वेब की जितनी भी वेबसाइट्स है, जितनी भी इन्फॉर्मेशन है और जितने भी वेबपेजेज़ हैं वो किसी भी सर्च इंजन में इंडेक्स नहीं है। इसमें जिस कांफीडेंशयल डेटा की बात हो रही है, वो किसी का भी हो सकता है। उदाहरण के लिए डीप वेब मे जो डेटा स्टोर होता है वो किसी बड़ी कंपनी का हो सकता है। किसी यूनिवर्सिटी का हो सकता है, किसी देश की सरकार का हो सकता है, किसी बैंक का डेटा हो सकता है। या फिर किसी और संस्थान का।

इसमें बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटीज के जितने भी महत्वपूर्ण संशोधन हैं, जितने भी डाटाबेस हैं, बड़ी बड़ी कंपनियों के, बड़े बड़े बैंकों के जितने भी इन्फॉर्मेशन हैं , सरकार के जितने भी सीक्रेट प्रोजेक्ट्स हैं, बहुत सारी सीक्रेट फाइलें हैं या कोई भी ऐसी चीज़ जो आपको एक गूगल सर्च पर कभी भी नहीं मिल सकती। उसको हम कहेंगे डीप वेब।
वैसे डीप वेब की जरुरत हमें भी पड़ती हैं क्योंकि इंटरनेट पर हमें बहुत सारा डेटा स्टोर करना पड़ता है। जिसको हम पूरे विश्व में शेयर तो करना चाहते हैं लेकिन हम उस डेटा को कुछ ही लोगों के साथ शेयर करना चाहते हैंउदाहरण के लिए यदि किसी कंपनी की कोई जरुरी फाइल है जिसे वह कंपनी सिर्फ अपने कर्मचारियों के साथ ही शेयर करना चाहती है।

तो ऐसे मे वह कंपनी उस फाइल को एक्सेस करने के लिए अपने कर्मचारियों को उस वेबपेज का लिंक देगी। जिसमें वह डेटा स्टोर है जो सिर्फ कंपनी के अंदरूनी उपयोग के लिए है। और उसे एक्सेस करने के लिए कोई ऑथेंटिकेशन या एक login id और password देगी जिसकी मदद से उस कंपनी के कर्मचारी ही उस फाइल को एक्सेस कर पाएंगे। उन कर्मचारियों के अलावा यह इन्फॉर्मेशन किसी औऱ व्यक्ति को किसी भी सर्च इंजन पर कभी भी नहीं मिलेगी।

इसके अलावा हमारे बैंक खातों के ट्रांज़ैक्शन, हमारी रेलवे टिकट बुकिंग, औऱ ऐसे कई व्यवहार जो हम ऑनलाइन करते हैं। जो सिर्फ हमारे अपने उपयोग के लिए है। लेकिन फिर भी इंटरनेट पर है जो किसी न किसी वेबसाइट पर है। लेकिन वह कभी भी किसी भी सर्च इंजन के सर्च रिजल्ट में नहीं आएंगे।ये सारा डेटा डीप वेब के तहत आता है।

डार्क वेब (Dark Web) पेज पर आम तरीकों से नहीं पहुॅचा जा सकता है। यहां पहुुॅुचने के लिये लोग एक अलग ब्राउजर का इस्‍तेमाल करते हैं, जिसे टॉर कहते हैं।

अब हम इंटरनेट के उस हिस्से की बात करेंगे जिसको डार्क वेब के नाम से जाना जाता है।

डार्क वेब (dark web), नाम से ही समझा जा सकता है कि यह इंटरनेट का वह अंधेरा कोना है जो हम जैसे आम लोगों के लिए बना ही नहीं है। यह इंटरनेट का वो सबसे खतरनाक हिस्सा होता है, जिसमें ज्यादातर ग़ैरकानूनी काम करने वाले लोग या आर्गेनाईजेशन अपने वेबपेजेज़ या वेबसाइट्स होस्ट करते हैं।

यह वेबपेजेज़ औऱ वेबसाइट्स एन्क्रिप्टेड होती है एवं इनकी पहचान अज्ञात होती है। इन वेबसाइटों को आम सर्च इंजन या गूगल के जरिए सर्च नहीं किया जा सकता। यह वेबसाइट्स इतनी अभेद्य होती है कि बड़े बड़े देशों की पुलिस औऱ जासूसी नेटवर्क तक को इन को भेदने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।

और यह डीप वेब के बाद वाली लेयर होती है। यहां यह समझना जरूरी है कि हम सिर्फ आपको डार्क वेब के बारे मे बता रहें हैं, आपसे अनुरोध करते हैं और आपको पहले ही चेतावनी दे देते हैं की डार्क वेब का इस्तेमाल पूरे तरीके से गैरकानूनी है, आप इसका इस्तेमाल भूलकर भी मत करिएगा।

आप ये समझिए कि डार्क वेब पर आप कुछ भी कर सकतें हैं। यह इंटरनेट का वह काला धब्बा है जहाँ पर आप कुछ भी, कभी भी, कैसे भी कर सकतें हैं। हालाँकि डार्क वेब आपको सामान्य सर्च इंजन या गूगल पर कभी भी नहीं मिलेगा।

यदि आप डार्क वेब को इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको उसके लिए चाहिए होगा एक स्पेशल ब्राउज़र। जिसे जाना जाता है TOR(The Onion Router) के नाम से, या फिर Tor Browser के नाम से। इस ब्राउज़र की मदद से आप अपने IP address को, मतलब एक तरीके से आप अपनी पहचान को इंटरनेट पर जाहिर होने से छुपा सकतें हैं और अगर आप Tor Browser को इस्तेमाल करते हैं, तो ही आप डार्क वेब में कुछ भी एक्सेस कर पाएंगे। लेकिन आप यह फिर से जान लें की ये पूरी तरह से गैरकानूनी है

डार्क वेब में जो भी काम होते हैं वो पूरी तरह से गैरकानूनी होते हैं। इसको एक्सेस करने के लिए एक्सेस करने वाले को सजा भी होती है। इसमें जो काम होते है वो कुछ इस प्रकार हैं – गैम्बलिंग यानी जुआ, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, ड्रग्स कि ट्रेडिंग, पोर्नोग्राफी, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, मानवीय अंगों का व्यापार, गैरकानूनी शस्त्रों का व्यापार, औऱ कई ऐसी गतिविधियां जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। जितने भी गैरकानूनी काम होते हैं वो सिर्फ डार्क वेब पर होते हैं और इसका पता सिर्फ उन लोगों को होता है जो इसमें काम करते हैं

डिस्क्लेमर: यह आर्टिकल सिर्फ़ जानकारी के लिए लिखा गया है। लेखक की आपको हिदायत है कि आप किसी भी सूरत में डार्क वेब ब्राउज न करें।

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