क्या है उत्तरप्रदेश के उपचुनावों में भाजपा की हार का राज़?

एक तरफ तो भाजपा जिन राज्यों में चुनाव लड़ी है उन सभी राज्यों में बहुत भारी मतों से जीत हासिल की है। लेकिन जहां भी उपचुनाव हुए हैं, ज्यादातर उपचुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। ऐसा क्योंकर होता है कि मुख्य चुनाव जीतने वाली भाजपा उन्हीं राज्यों में होनेवाले उपचुनाव हार जाए? हाल ही में उत्तरप्रदेश के उपचुनाव जो भाजपा के लिए बेहद प्रतिष्ठा रखने वाली सीटों पर हुए। जो सीटें मुख्यमंत्री औऱ उपमुख्यमंत्री की संसदीय सीटें खाली करने की वजहसे उपचुनावों में गई थी, वहाँ इतने कम समय में ऐसा क्या परिवर्तन हो गया कि यकायक मतदाताओं का मूड बदल गया? ऐसा क्या प्रादेशिक पार्टियों ने उजागर कर दिया कि उनके प्रत्याशियों में मतदाताओं को उद्धारक नज़र आ गया?

बहुत कारण हो सकते हैं। शायद अखिलेश यादव ने जिस विनम्रता से हार को कुबूल किया, औऱ भाजपा को प्रदेश के विकास में हर सम्भव सहायता करने का इरादा जताया, तो लोगों को यह बात छू गई हो। शायद जनता ने यह सोचकर आशीर्वाद दिया हो कि विपक्ष मजबूत हो तो भाजपा सरकार भी सतर्क रहकर विकास के काम करेगी। यह भी हो सकता है कि हर कदम पर लड़ने वाले सपा औऱ बसपा भी एकजुट होकर कर चुनाव लड़े। बसपा ने सपा के प्रत्याशी को अपना पूरा समर्थन देने के साथ ही ज़मीन पर उनकी जीत के लिए जो भी बन पड़ता था, किया। अग़र उत्तरप्रदेश के उत्थान के लिए ये दोनों प्रादेशिक पार्टियां एक हो सकती है तो स्थितियां तुरतफुरत बदलेंगी यह सोच भी हो सकती है।

इधर मुख्यमंत्री योगीजी का कहना है कि अति आत्मविश्वास के चलते भाजपा की हार हुई है। यह भी एक बड़ा कारण रहा हो सकता है। मतदाता हर तरफ नज़र रखे हुए है, इस बात को सारी पार्टियों को समझने की जरूरत है। एक बहुत भारी बदलाव के कगार पर इस वक़्त देश खड़ा है। जहां २०१९ में पूरे देश की जनता को यह तय करना है कि मोदीजी को एक औऱ मौक़ा देना है या फिर उसी दिशा में भारत को ले जाना है जहां २०१४ से पहले हम थे।

एक बात तो तय है कि २०१९ की राह किसी भी सुरत में मोदीजी औऱ भाजपा के लिए कतई आसान नहीं है। सारे विपक्षी दल एकजुट होना चाहते हैं। उधर, भाजपा के सहयोगी दल एक एक करके अपने रास्ते अलग करते जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा को २०१४ का आंकड़ा हासिल करना नामुमकिन सा लगता है।

लेकिन क्या वाकई में भाजपा की हार सरकार की नाकामियों की वजहों से हुई है? क्या किसानों की बदहाली औऱ युवाओं की बेरोजगारी इन हारों का कारण है। क्या भाजपा की नीतियों के चलते समुदायों के बीच की दूरियां बढ़ी हैं? क्या बैंकों के घोटालों के लिए मोदीजी जिम्मेदार हैं? क्या भारतीय अर्थव्यवस्था को भाजपा सरकार ने पटरी पर से उतार दिया है? क्या भारत बदहाली के कगार पर आ गया है?

इन सब सवालों के जवाब उन सभी लोगों को ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए जो भारत की उन्नति के पक्षधर हैं। क्यों अबतक सही तरीके से चलने वाली भारतीय बैंकिंग प्रणाली यकायक कमज़ोर दिखाई देती है? क्यों उन सभी लोगों को भारत छोड़कर विदेश की राह पकड़ने को मजबूर होना पड़ा जिन्होंने घपलेबाजी की। ऐसा क्यों हो रहा है कि आधार कार्ड से जुड़ने के बाद करोड़ों गैस कनेक्शन बंद हो गए जो भूतिया नामों पर चल रहे थे। आधार कार्ड के बैंक खातों से जुड़ने से भूतिया खातों की दिक्कतें बढ़ने लगी। आधार कार्ड के राशन कार्ड से जुड़ते ही कई लाख राशनकार्ड बंद हो गए। जिनके चलते सस्ता अनाज जो कालाबाजारी करने वाले ले जाते थे, वह असली हक़दारों तक पहुंच पाया।

ऐसी औऱ भी कई चीजें हैं जो उन सभी लोगों को परेशान कर रही हैं जिनकी दुकानें जो पिछ्ली सरकारों में धड़ल्ले से चल रही थी, बंद हो गई है या बंद होने के कगार पर है। यह हो सकता है कि भाजपा सरकार बहुत से निर्णय लेने में गलती कर रही हो। लेकिन यह भी सही है कि गलत हो या सही, एक्शन तो लेने होगें। काम तो निरंतर करना होगा। चाहे कितने ही विरोध हो। औऱ मोदीजी औऱ उनकी सरकार यही कर रही है।

विरोधी दल यह तो समझते हैं कि एक औऱ टर्म मोदीजी को मिल गई तो भारतमें उनके किये कामों के परिणाम दिखने लगेंगे। ऐसे में लोग फिर उन्हें ही प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहेंगे। फिर लंबे अरसे तक भाजपा को हराना दूभर होगा। तो पुर्ण चुनावों में तो भाजपा को ज़मीन पर हराना दिक्कत की बात हो सकती है। लेकिन उपचुनावों में सारी विरोधी ताकतें गिनती की सीटों पर फ़ोकस हो जाती है। एवं मतदाताओं को येनकेन प्रकारेण अपने लिए वोट डालने पर राजी कर लेते हैं।

उत्तरप्रदेश में तो ऐसे भी सपा औऱ बसपा की गहरी पैठ है। औऱ सवाल जब अस्तित्व का हो तो जितना लाज़मी हो जाता है। दूसरी तरफ योगीजी का आकलन भी सही हो सकता है कि अति आत्मविश्वास के चलते भाजपा की हार हुई है। कुछ भी हो, २०१९ की राह मोदीजी के लिए काफ़ी मुश्किल औऱ कठिन होने वाली है।

आप का क्या नजरिया इसको लेकर है, यह आप जरूर कॉमेंट में लिखियेगा।

#Uttar Pradesh Elections, #BJP, #Election

A young and enthusiastic marketing and advertising professional since 22 years based in Surat, Gujarat. Having a vivid interested in religion, travel, adventure, reading and socializing. Being a part of Junior Chamber International, also interested a lot in service to humanity.
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2 thoughts on “क्या है उत्तरप्रदेश के उपचुनावों में भाजपा की हार का राज़?

  1. World Bank ney Modi jee ke GST ko jateel karaar diyaa…Demonetisations ko Indian Middle and lower class ney nakaraa…Narmadaa kee height badhaiee aur bilkul fizul sardar ke statue mey karodo kharch kiyey per Narmadaa khud sukh gaiee…Adhar card bank aur ph. mey link karvaney logo ko dodaayaa per abhi supreme court ney kahaa kee Adhar is not compulsary for banks and phones…Gujarat mey unkey aaney sey 3 mahiney dangey chaley…aur jesey hee C. M. sey P. M. baney to Gujarat mey haar ke baraaber hee jeet mili…kanhaa BJP ko safltaa mili bhai?
    Kanhaa vikaas huwaa bhai?
    Bhaarat 4 saal paheley bhi vishwa kee 3rd maha sattaa thhaa aur aaj modi jee ke 4 saal baad bhi vahee kaa vahee hai bhaarat…rattibhar bhi vikaas nahee huwaa…sirf marketing hai…he tries to represent him self as world leader…he is not succeed universaly as Gandhi, Jawaahar and Indiraa jee were…Aap kee ye site bhi Modi bhaqta hee lag rahee hai hamey…!
    Desh, Duniaa aur Destiny all three Ds are not with this no. 1 Drameybaaz…Simple fact…!

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