आद्या सिंह अपमृत्यु केस:सुप्रीम कोर्ट हरक़त में। आद्या के पिता की अर्जी पर मांगा जवाब, केंद्र सरकार, मेडिकल काउंसिल एवं हरियाणा सरकार से।

आद्या सिंह अपमृत्यु केस में फोर्टिस अस्पताल के खिलाफ आद्या के पिता की अर्जी पर गंभीरता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार, मेडिकल काउंसिल, फोर्टिस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम, National Pharmaceutical Pricing Authority (NPPA), डॉ विकास वर्मा, senior consultant department of paediatrics, FMRI एवं हरियाणा सरकार से पूरे मामले में जवाब तलब किया है।

आद्या सिंह की डेंग्यू के चलते फोर्टिस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में मौत हो गई थी।

सात वर्षीय आद्या सिंह ड़ेंगू के चलते फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम में भर्ती की गई थी। अस्पताल की कई लापरवाहियों के चलते उसकी मृत्यु हो गई थी।

गौरतलब है कि सात वर्षीय बच्ची आद्या सिंह डेंग्यू से पीड़ित थी, जब उसे फोर्टिस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पीडियाट्रिक विभाग के ICU में डॉ विकास वर्मा की निगरानी में दाखिल किया गया था। आद्या सिंह अपमृत्यु केस का पूरा मामला ग्रॉस मेडिकल नेगलेजेंसी का पाया गया था, जब हरियाणा सरकार ने इस मामले में जांच करते हुए रिपोर्ट सबमिट किया था।

जांचआद्या सिंह अपमृत्यु केस की जांच में बताया गया है कि बच्ची की ट्रीटमेंट के दौरान फोर्टिस अस्पताल के द्वारा अनाप शनाप दवाइयां एवं मेडिकल कंजुमेबल्स के बिलों का पुलिंदा खड़ा कर दिया गया था। गत वर्ष सितंबरमें आद्या की ट्रीटमेंट के दौरान एक वक्त जब अस्पताल ने ये महसूस किया कि अब आद्या का परिवार औऱ ख़र्च नहीं कर पाएगा, मैनेजमेंट ने आद्या के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद कर दिया।

आद्या कि मृत्यु के पश्चात, आद्या के परिवार को साढ़े पंद्रह लाख रुपयों का बिल थमा दिया गया। आद्या के पिता जयंत सिंह ने NDTV को बताया कि जब इस बारे में उन्होंने सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलाया तो अस्पताल के खिलाफ पूरे देश में रोष फैल गया था एवं कई लाख लोगों ने इस कैम्पेन को सपोर्ट किया था।

ये सब कुछ देखते हुए अस्पताल मैनेजमेंट के वरिष्ठ अधिकारियों ने जयंत सिंह को उनके घर जाकर पूरे बिल की राशि वापस देने के साथ ही सोशल मीडिया पर कैम्पेन वापस लेने की एवज में पच्चीस लाख रुपए अतिरिक्त देने का ऑफर भी दिया था जिसे जयंत सिंह ने ठुकरा दिया था।

हालांकि अस्पताल मैनेजमेंट ने इस बात को पूरी तरह नकार दिया था। इधर, हरियाणा सरकार की जांच में अस्पताल की तरफ से कई तरह की लापरवाही बरतने के साथ ही बच्ची की ट्रीटमेंट के दौरान १०८ प्रतिशत नफ़ाख़ोरी करने की बात सामने आई है।

जयंत सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में ये गुहार लगायी है कि ऐसी कोई ऑथोरिटी “राष्ट्रीय मेडिकल नेग्लिजेंसी बोर्ड” का गठन किया जाए, जो अस्पतालों की ग़ैर कानूनी हरकतों पर नज़र रखते हुए ये सुनिश्चित करें कि कोई भी पेशंट बिना वजह ठगा हुआ महसूस न करें।

सुप्रीम कोर्ट ने जयंत सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार के साथ ही औऱ सब पक्षकारों को जवाब देने को कहा है। इस मामले की सुनवाई में आगे चलकर अगर सुप्रीम कोर्ट या सरकार ऐसी कोई बोर्ड़ या ऑथोरिटी का गठन करने का आदेश पारित करे, तो अस्पतालों की मनमानी पर जरूर लग़ाम कस सकती है।

अगर आप इस मामले में कोई राय रखते हैं तो यहां ज़रूर कॉमेंट कीजिए। क्योंकि ये मामला कहीं न कहीं हम सब से जुड़ा हुआ है औऱ जिसका हल हरकोई चाहता है।